मानव – जीवन में शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा हमारी अनुभूति और संवेदनशीलता को तीव्र करती है जिससे हममें वैज्ञानिक समझ बढ़ती है और राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होता है। विश्व की आधे से ज्यादा समस्याओं की जड़ अशिक्षा है इसलिए ही कहा जाता है कि “एक शिक्षित समाज सभ्य समाज की स्थापना कर सकता है।” जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा ही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी जन्मजात शक्तियों को विकसित करके अपने व्यवहार तथा विचारों में निरंतर परिवर्तन, परिमार्जन एवं परिवर्ध्दन कर सकता है।
शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को समझकर उसे सुरक्षित रखने एवं विकसित करने में सफल हो सकता है। जीवन के सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक तथा धार्मिक आदि क्षेत्रों में शिक्षा अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शिक्षा जीवन में सफलता की कुँजी है, इसलिए शिक्षाविद् जननेता तथा सरकार राष्ट्र के विकास के लिए शिक्षा को प्रारंभ से ही अनिवार्य मानते रहे है।
“बच्चा पढ़ेगा तो देश बढ़ेगा” अगर इस स्लोगन को कामयाब बनाना है तो निश्चित रुप से देश और माता – पिता दोनों को ही सक्रिय होना पड़ेगा। श्री पांडेय जी तो यहाँ तक कहा है कि जो माता -पिता अपने बच्चे को नहीं पढ़ाते है उन्हें बालपन से ही मजदूरी के लिए झोंक देते है अत: उन पर आपराधिक मामले दर्ज किये जाने चाहिए। बच्चे को पढ़ना माता – पिता की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए और बच्चे के लिए उसके निकट शिक्षा की व्यवस्था करना सरकार का काम होना चाहिए। तभी बच्चा पढ़ेगा और देश भी आगे बढ़ेगा। अत: पढ़ते रहिये और आगे पढ़ते रहिये।